पहले दिल्ली और अब मुंबई ! एसएससी के छात्रों के बाद मुंबई में अप्रेंटिस छात्रों ने स्थाई
नौकरी की मांग करते हुए , रेल रोको आंदोलन किया । चूंकि छात्रों ने मुंबई महानगर की
लाइफलाइन समझे जाने वाली लोकल ट्रेनों को रोका , तो सरकार ने परिणामों की गंभीरता
भांपते हुए , छात्रों की मांगे मान ली । देर - सवेर ही सही लेकिन अब यह सवाल गाहे -
बगाहे उठने लगा है कि जिन नौजवानों ने नरेंद्र मोदी को गुजरात के मुख्यमंत्री भवन से
निकाल कर , दिल्ली के सत्ता के गलियारों में काबिज़ करा , वही नौजवान आज अच्छे दिनों
की सरकार के खिलाफ़ सड़कों पर उतरने को , क्यों आमदा है ?
नौजवान हिंदुस्तान , उम्मीदें ‘ मोदी ‘ !
इस सवाल को खड़ा किया है हिंदुस्तान की मुल्क के रूप में बदलती पहचान ने । देश की
आबादी में आज जँहा नौजवानों का हिस्सा 65 फीसदी हो चुका है , तो वहीं सूचना क्रांति
आज समूची दुनिया को ग्लोबल बाजार में तब्दील कर रही है , ऐसे में डिजिटल की डिजिटो
की सुई में ख़्वाब बुनती हिंदुस्तान की इस युवा पीढ़ी को अपनी आशाओं और उम्मीदों का
मसीहा मजबूत नेतृत्व के रूप में नरेंद्र मोदी में नजर आता है . हाल ही की एक अंग्रेजी
अखबार की रिपोर्ट प्रकाशित हुई , जिसमे युवा बेरोजगारों की संख्या 31 मिलियन पार होने
की बात कही गयी । ऐसे में इस प्रकार के आंदोलनों का उभार होना लाज़मी है जो नरेंद्र मोदी
सरकार से व्यापक परिणामो की उम्मीद लगाए बैठे है .
रोजगार संबंधी योजनाओं और नीतियों का कमतर पड़ना :
ऐसा नहीं है कि सरकार ने रोजगार को लेकर योजना और कार्यक्रम नहीं बनाये . स्किल इंडिया
, स्टार्टअप इंडिया , स्टैंड अप इंडिया , मुद्रा लोन सरीख़ी तमाम योजना सरकार लेकर आयी
लेकिन तेजी से बढ़ती युवा आबादी के लिए ये सभी कार्यक्रम अपर्याप्त नज़र आते है . इसके
अलावा सरकारी नौकरियों की मनोदशा रखने वाले युवा वर्ग के लिए पारदर्शी प्रणाली तैयार
करना भी सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है . यह सही है की बेरोजगारी का समाधान यह
कतई नहीं की सरकार सभी को रोजगार दे और खासकर तब जब भारत दुनिया के तीन
सबसे बड़ी जीडीपी वाली अर्थव्यवस्था में से एक हो , लेकिन रोजगार को लेकर नीतिगत स्तर
पर जिन प्रभावशाली कार्यक्रमों की जरूरत है चाहे वो प्राइवेट सेक्टर के माध्यम से हो या
सरकारी क्षेत्र के माध्यम से उसमे सबसे बड़ी भूमिका सरकार की है .
और अंत में : आंदोलनों ही सरकारों पर दबाव डालते है
बीते चार बरस गुजर जाने के साथ ही उम्मीदें और तेज गति के साथ बड़ी है .
लोकतंत्र सरीखी व्यवस्था में मतदाता का वोट ही सबसे बड़ा पावर बटन होता है
ऐसे में मतदाताई लोकतंत्र में 38 फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाला नौजवान
वोटर किसी भी सरकार के लिए सबसे बड़े दबावों में से एक है . और इस दबाव
को बनाने का जो सबसे कारगर तरीका है , वो है आंदोलन ! उम्मीदों की नाव की
जो पतवार नौजवानों ने नरेंद्र मोदी को थमाई है उसे पूरा करवाने के लिए अब
आंदोलन ही एकमात्र जरिया बचा है और नौजवानो ने अब उसी राह को पकड़
लिया है
नौकरी की मांग करते हुए , रेल रोको आंदोलन किया । चूंकि छात्रों ने मुंबई महानगर की
लाइफलाइन समझे जाने वाली लोकल ट्रेनों को रोका , तो सरकार ने परिणामों की गंभीरता
भांपते हुए , छात्रों की मांगे मान ली । देर - सवेर ही सही लेकिन अब यह सवाल गाहे -
बगाहे उठने लगा है कि जिन नौजवानों ने नरेंद्र मोदी को गुजरात के मुख्यमंत्री भवन से
निकाल कर , दिल्ली के सत्ता के गलियारों में काबिज़ करा , वही नौजवान आज अच्छे दिनों
की सरकार के खिलाफ़ सड़कों पर उतरने को , क्यों आमदा है ?
नौजवान हिंदुस्तान , उम्मीदें ‘ मोदी ‘ !
इस सवाल को खड़ा किया है हिंदुस्तान की मुल्क के रूप में बदलती पहचान ने । देश की
आबादी में आज जँहा नौजवानों का हिस्सा 65 फीसदी हो चुका है , तो वहीं सूचना क्रांति
आज समूची दुनिया को ग्लोबल बाजार में तब्दील कर रही है , ऐसे में डिजिटल की डिजिटो
की सुई में ख़्वाब बुनती हिंदुस्तान की इस युवा पीढ़ी को अपनी आशाओं और उम्मीदों का
मसीहा मजबूत नेतृत्व के रूप में नरेंद्र मोदी में नजर आता है . हाल ही की एक अंग्रेजी
अखबार की रिपोर्ट प्रकाशित हुई , जिसमे युवा बेरोजगारों की संख्या 31 मिलियन पार होने
की बात कही गयी । ऐसे में इस प्रकार के आंदोलनों का उभार होना लाज़मी है जो नरेंद्र मोदी
सरकार से व्यापक परिणामो की उम्मीद लगाए बैठे है .
रोजगार संबंधी योजनाओं और नीतियों का कमतर पड़ना :
ऐसा नहीं है कि सरकार ने रोजगार को लेकर योजना और कार्यक्रम नहीं बनाये . स्किल इंडिया
, स्टार्टअप इंडिया , स्टैंड अप इंडिया , मुद्रा लोन सरीख़ी तमाम योजना सरकार लेकर आयी
लेकिन तेजी से बढ़ती युवा आबादी के लिए ये सभी कार्यक्रम अपर्याप्त नज़र आते है . इसके
अलावा सरकारी नौकरियों की मनोदशा रखने वाले युवा वर्ग के लिए पारदर्शी प्रणाली तैयार
करना भी सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है . यह सही है की बेरोजगारी का समाधान यह
कतई नहीं की सरकार सभी को रोजगार दे और खासकर तब जब भारत दुनिया के तीन
सबसे बड़ी जीडीपी वाली अर्थव्यवस्था में से एक हो , लेकिन रोजगार को लेकर नीतिगत स्तर
पर जिन प्रभावशाली कार्यक्रमों की जरूरत है चाहे वो प्राइवेट सेक्टर के माध्यम से हो या
सरकारी क्षेत्र के माध्यम से उसमे सबसे बड़ी भूमिका सरकार की है .
और अंत में : आंदोलनों ही सरकारों पर दबाव डालते है
बीते चार बरस गुजर जाने के साथ ही उम्मीदें और तेज गति के साथ बड़ी है .
लोकतंत्र सरीखी व्यवस्था में मतदाता का वोट ही सबसे बड़ा पावर बटन होता है
ऐसे में मतदाताई लोकतंत्र में 38 फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाला नौजवान
वोटर किसी भी सरकार के लिए सबसे बड़े दबावों में से एक है . और इस दबाव
को बनाने का जो सबसे कारगर तरीका है , वो है आंदोलन ! उम्मीदों की नाव की
जो पतवार नौजवानों ने नरेंद्र मोदी को थमाई है उसे पूरा करवाने के लिए अब
आंदोलन ही एकमात्र जरिया बचा है और नौजवानो ने अब उसी राह को पकड़
लिया है
No comments:
Post a Comment