Monday, October 30, 2017

प्रतीक राजनीती की खुलती परते

आज का दौर विकास की राजनीती का है। हर नेता के भाषण में 'डवलपमेंट' है। धर्म और जाति भाषणों में खिसक कर दूसरे पायदान पर पहुँच चुके है। इस विकास की राजनीती के मुखिया नरेंद्र मोदी है। 2014  लोकसभा चुनावों को जब नरेंद्र मोदी ने ,विकास के इर्द-गिर्द बुना और भाषणों में गुजरात मॉडल का जिक्र किया , तो जनता ने भी उन पर भरोसा जाहिर कर दिया।  लेकिन शायद जनता ने , उनके गुजरात मॉडल को , टटलोने की जद्दोजेहद उस समय नहीं करी।गुजरात विधानसभा चुनावों की घोषणा के साथ ही , वँहा की जनता अब नरेंद्र मोदी और भाजपा के विकास के उन दावों को खंगाल रही है , जिसको डंके की चोट पर मोदी देश और विदेश में घूम - घूम कर बताते है। कांग्रेस पार्टी गुजरात चुनाव के  अपने कैंपेंन के लिए, सोशल मीडिया पर एक गाना चलाती है 'विकास पागल हो गया है'  जो लोगो के बीच में अचानक से लोकप्रिय हो जाता है। तीन युवा , हार्दिक पटेल ,अल्पेश ठाकुर और जिग्नेश मेवानी लाखों की संख्या की भीड़ जुटा कर , सीधा गुजरात मॉडल के कर्ता- धर्ता को टक्कर देने का साहस दिखाने लगते है। जिस राहुल गाँधी को जनता ने , राजनैतिक अपरिपक्व मानकर , हाशिये पर डाल दिया , अचानक से गुजरात की जनता में , उन्हे सुनने की डिमांड बढ़ने लगती है। चुनाव आयोग ,प्रधानमंत्री की चुनावी घोषणाओं के चलते ,गुजरात चुनावों की घोषणा देरी से करता है। शंकर सिंह वागेला पर , सीबीआई की रेड़ डलवाकर , उन्हें चुनावी रण से बाहर कर दिया जाता है। आईबी हर पल , मोदी  के विरोधियों की गतविधियों पर नजर रखती है। चुनावी दौर में खुल्मखुला , ख़रीद - फ़रोख़्त की जाती है। जिन अमित शाह को , भाजपा का चुनावी चाणक्य कहा जाता है , उन्ही शाह को मोदी ,गुजरात के रण में मुख्य भूमिका देने से बचते है ,क्योकि प्रधानमंत्री कोई रिस्क नहीं लेना चाहते। अरुण जेटली को गुजरात का प्रभारी जरूर बना दिया गया , पर  वो व्यस्त हिमाचल में दिखाई देते है। गुजरात में प्रधानमंत्री के दौरों की बाढ़ आ जाती है। प्रधानमंत्री देश में कंही भी जाये ,उनके भाषणों में कांग्रेस निशाने पर है। अचानक से इतना सब कुछ बदला-बदला क्यों ? क्या नरेंद्र मोदी और भाजपा , जिन्होंने 22 वर्ष गुजरात पर शासन किया , आज अचानक से उनके विकास के दावे दम तोड़ रहे है ? गुजरात जैसा राज्य , जो कि कमर्शियल स्टेट है ,वंहा की प्रगति को नरेंद्र मोदी के शासन की देन का दावा , भाजपा करती है। पटेल , ठाकुर और दलित आंदोलनो के नेताओ में एक बात कॉमन निकल कर आती है , चाहे आरक्षण हो या ना हो ,गुजरात का युवा बेरोजगारी का दंश झेल रहा है। औद्योगिक  घरानों को दी गयी खुली छूट के चलते , किसान और खेती दोनों हाशिये पर है।  किसान के पास खेती के लिए जमीन नहीं बची और जो बची , उस पर होने वाली खेती से लागत निकाल पाना भी मुश्किल हो रहा है। नोटबंदी और जीएसटी के चलते व्यापार की मंदी के सच को दरकिनार नहीं किया जा सकता। सवाल ये है की गुजरात मॉडल के प्रतीक की हकीकत क्या है ? दरसअल सच्चाई ये है ,गुजरात में आद्यौगिक विकास के लिए जो कुछ भी किया गया , पुरे गुजरात को उसी के ही इर्द गिर्द बुन दिया गया और उसे ही देश के सामने गुजरात मॉडल के रूप में पेश किया गया। ये गुजरात मॉडल एक प्रतीक बन गया जिसकी हकीकत ये है की वो सिर्फ और सिर्फ  एक आदर्श है पूरा गुजरात और गुजरातियों तक इसकी पहुँच नहीं है। आज इस प्रतीक राजनीती के मॉडल गुजरात मॉडल की परते खुलने लगी है। कुछ के विकास को सभी का विकास बता कर और सबका साथ पा लिया गया। लेकिन समय और दौर दोनों तेजी से बदले है आगे देखते है इस प्रतीक राजनीती की और कितनी परते खुलती है। 

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