स्मॉग और प्रदूषण को लेकर देश की राजधानी दिल्ली जब सुर्खियों में थी , ठीक उसी समय इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र में , आजतक के कार्यक्रम 'साहित्य आजतक' का आयोजन हो रहा था।
प्रवेश सम्बंधित तमाम जरुरी औपचारिकता को करने के बाद , अंदर प्रवेश करते ही चारो तरफ साहित्य जगत से जुड़े लोकप्रिय लोगो के बैनर टंगे हुए दिखाई पड़े । गुलजार साहब और कुमार विश्वास के कटआउट्स को देखकर ऐसा लग रहा था मानों वो उन लोगो को सीधे चुनौती है जिन्हे बाजार के दौर में भाषाई तौर पर हिंदी और उर्दू साहित्य कम कीमत का नज़र आता है।

आयोजन स्थल को बड़े ही कलात्मक ढंग से सजा - संवार कर उकेरा गया था। आयोजन में आने वाले अतिथियों की लम्बी फेरिस्त यह बयां करने के लिए काफी थी की साहित्य और कला के हर दौर और हर विधा से जुडी शख़्सियत यंहा मौजूद होगी । शाम का सूरज ढलने लगा था और भीड़ की चहक कदमी बढ़ रही थी। ये आयोजन का दूसरा दिन था। मुख्य मंच पर राजस्थानी लोक कलाकार माामे खान के 'पधारो म्हारे देश' की आवाज गूँज रही थी। लग रहा था की जैसे रेतीला राजस्थान दिल्ली के लुटियंस में उतर आया हो।पास ही एक दूसरी जगह पर अंजना ओम कश्यप के साथ मनोज तिवारी की भोजपुरी में बातचीत चल रही थी।जिया हो बिहार के लाला गाते ही उठे शोर ने दिल्ली में रहने वाले पूर्वांचल की दमदार मौजूदगी का अहसास करा दिया। लोक भाषाओं से जुड़े इन सत्रों से इतर स्टेज नंबर दो पर स्टैंडअप कॉमेडियन नितिन गुप्ता और मिमक्री स्टार श्याम रंगीला का सेशन शुरू हो चूका था। राजनीतिक आलोचना को कला किस तरह अभिव्यक्त कर जनमानस तक पहुँचाती है वो इन दो युवा कॉमेडियनस ने बेहतरीन तरीके से किया । इस पूरे आयोजन को देखकर लग रहा था की मानों हिंदुस्तान का बिखरा हुआ साहित्य और बिखरी हुई कला का अतीत और वर्तमान एक साथ एक जगह पर आ गया हो। अगले दिन सुबह पीयूष मिश्रा का कार्यक्रम था। नौजवानों की भीड़ पीयूष को सुनने के लिए दीवानी थी। ' इक बगल में चाँद होगा 'को जैसे ही पीयूष ने गुनगुनाया तो नौजवानों की आवाजो के शोर ने बता दिया उनका रॉकस्टार कौन है। मैदान में अरविन्द गौड़ के निर्देशन में 'दस्तक' नाटक का मंचन हो रहा था।लाड़ली लड़कियों का हाल बयां करता ये नाटक हर एक देखने वाले की आँखों में आंसूओ का समंदर उमड़ा गया। सूरज की धुप का इंतजार करते - करते बारह बज चुके थे।खाने के स्टालों पर बढ़ती भीड़ लोगो के इरादे इजहार करने लगी थी। दिन भर के अलग - अलग सत्रों के बाद एक बड़ा ही रोचक सत्र था अंडरवर्ल्ड की कहानियाँ। लगा जैसे कोई क्राइम थ्रिलर होगा। पूर्व पुलिस कमिशनर नीरज कुमार और हुसैन जैदी ने दाऊद के किस्सों को जिस तरह बयां किया उसे सुनते हुए अहसास हुआ जैसे तीन घंटे की कोई फिल्म देख रहे है। बहरहाल साहित्य आजतक अपने अंतिम दौर में पहुँच चूका था। चेतन भगत के साथ पुण्य प्रसून वाजपेयी का सेशन था। स्टेज नंबर दो लबालब भरा चूका था। चेतन भगत ने पुण्य प्रसून वाजपेयी के तीखो सवालों के जवाब देते हुए अपने इरादे जाहिर करते हुए समझाया की किस तरह वो आज के दौर में गंभीर बात मनोरंजन के जरिये कहने की कोशिश कर रहे है। लगभग ख़त्म होने के दौर में पहुँच चूका साहित्य आजतक का आयोजन वंहा ठहरी हुई भीड़ के साहित्य और कला के प्रति लगाव को स्पष्ट रूप से दिखा रहा था। साहित्य आजतक जैसे आयोजन भले ही बाजार के दौर से गुजर रहे हो मगर ऐसे आयोजन साहित्य और कला प्रेमी लोगो को वो जगह मुहैया करवा रहे है जिसकी कमी अक्सर हर कोई अपनी निजी ज़िंदगी में आज के समय में महसूस करता है। साहित्य के लोकप्रिय चेहरों के जरिये साहित्य को लोकप्रिय बनाने की यह कवायद लगातर दूसरे साल भी जारी रही है और उम्मीद है आगे भी जारी रहेगी।

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